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मुंगेर में लिखी गयी थी सपूतों की शहादत की एक गाथा

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tarapur maratyr's story

लोग जलियांवाला बाग हत्याकांड से भली भांति परिचित होंगे । लेकिन बिहार में भी एक जगह है तारापुर जहाँ भी एक खुनी हत्याकांड हुई थी । वह भयावह दिन था 15 फरवरी 1932 जो 50 से अधिक सपूतों की शहादत के लिये प्रसिद्ध है।

क्या हुआ था उस दिन

15 फरवरी 1932 को दोपहर सैकड़ों आजादी के दीवाने मुंगेर जिला के तारापुर थाने पर तिरंगा लहराने निकल पड़े। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सबसे बड़े गोलीकांड में देशभक्त पहले से लाठी-गोली खाने को तैयार हो कर घर से निकले थे।भारत मां के वीर बेटों के ऊपर अंग्रेज कलक्टर ई ओली एवं एसपी डब्ल्यू फ्लैग के नेतृत्व में गोलियां दागी गई थीं। उन अमर सेनानियों ने हाथों में राष्ट्रीय झंडा और होठों पर ‘वंदे मातरम’ , ‘भारत माता की जय’ के नारों की गूंज लिए हँसते-हँसते गोलियाँ खाई थी। गोली चल रही थी लेकिन कोई भाग नहीं रहा था, लोग डटे हुए थे 50 से अधिक सपूतों की शहादत के बाद स्थानीय थाना भवन पर तिरंगा लहराया ।

तारापुर शहीद दिवस

तारापुर शहीद दिवस भारत में प्रत्येक वर्ष 15 फरवरी को मनाया जाता है जिसमें 15 फरवरी 1932 को बिहार राज्य के मुंगेर के तारापुर गोलीकांड में शहीदों को श्रंद्धाजलि दी जाती है। आजादी के बाद से हर साल 15 फरवरी को तारापुर दिवस मनाया जाता है। । इस गोलीकांड के बाद कांग्रेस ने प्रस्ताव पारित कर हर साल देश में 15 फरवरी को तारापुर दिवस मनाने का निर्णय लिया था नमन है उन  शहीदों को 

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